प्रेमचन्द
रचनाएँ -
1. पूस की रात ( कहानी ),
2. कफ़न ( कहानी )
3. गोदान ( उपन्यास )
भाषा-शैली
भाषा-
प्रेमचन्द्र जी की रचनाओं की भाषा हिन्दी - खड़ी बोली है । आपकी भाषा सरल, सहज,बोधगम्य एवं व्यवहारिक है । आपने अपनी रचनाओं में अवसरानुकूल उर्दू शब्दों का भी आकर्षक प्रयोग किया है । विषय,भाव,एवं पात्रानुरूप भाषा का प्रयोग आपकी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता है। आपकी रचनाओं में मुहावरे तथा लोकोक्तियों की छटा सर्वत्र दिखाई पड़ती है।
शैली -
प्रेमचन्द जी की शैली हिन्दी और उर्दू भाषा की मिश्रित शैली है । आपकी रचनाओं में अनेक शैलियों का प्रयोग हुआ है । उनमें से कुछ शैलियों का विवरण निम्नांकित है -
1. विचारात्मक शैली - इस शैली का प्रयोग आपके निबंध 'कुछ विचार' में देखा जा सकता है ।
2. भावात्मक शैली - आपने कहानी एवं उपन्यास के पात्रों की भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए इस शैली का बड़ी चतुराई के साथ उपयोग किया है ।
3. मनोवैज्ञानिक शैली - आपकी अधिकांश रचनाओं में इस शैली का उपयोग हुआ है । आपने अपनी कहानी( बूढ़ी काकी ) एवं उपन्यासों में पात्रों के मानसिक द्वन्द्व को इसी शैली के माध्यम से उभारा है ।
आपने इन शैलियों के अतिरिक्त विश्लेषणात्मक, अभिनयात्मक एवं व्यंगात्मक शैलियों का भी उपयोग किया है ।
साहित्य में स्थान -
हिन्दी साहित्य के उपन्यास सम्राट , युग प्रवर्तक कहानीकार प्रेमचन्द जी का नए कहानीकारों में विशिष्ट स्थान हैं । आप आधुनिक हिन्दी साहित्य जगत में कहानी -कला को अक्षुण्ण बनाए रखने वाले कहानीकारों में अग्रगणी हैं । हिंदी साहित्य जगत आपका सदा ऋणी रहेगा ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
रचनाएँ
1.सूर- साहित्य (आलोचना साहित्य)
2. बाणभट्ट की आत्म कथा ( उपन्यास)
3. पुनर्नवा ( उपन्यास)
भाषा- शैली
भाषा-
आचार्य द्विवेदी जी की भाषा उनकी रचना के अनुरूप है। उनकी भाषा के तीन रूप हैं- तत्सम प्रधान, सरल तद्भव प्रधान एवं उर्दू अंग्रेजी शब्द युक्त।
आपने भाषा को प्रवाह पूर्ण एवं व्यवहारिक बनाने के लिए लोकोक्तियों एवं मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है। प्रांजलता, भाव प्रवणता,सुबोधता , अलंकारिता ,सजीवता और चित्रोपमता आपकी भाषा की विशेषता है।
शैली-
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी विविध शैलियों के सर्जक हैं। उनकी शैली चुस्त एवं गठी हुई है। द्विवेदी जी की रचनाओं में हमें निम्नांकित शैलियाँ दृष्टोगोचर होती है-
1. व्यास शैली- उनके विचारात्मक तथा आलोचनात्मक रचनाओं में व्यास शैली का प्रयोग हुआ है।
2. गवेषणात्मक शैली- हिंदी साहित्य का आदिकाल, नाथ संप्रदाय जैसे शोध सबंधी साहित्य में इस शैली की छटा दृष्टव्य है।
3. विवेचनात्मक शैली- 'विचार वितर्क' जैसे निबंधों में इस शैली का प्रयोग दिखाई पड़ता है।
4.आलोचनात्मक शैली- 'साहित्य का धर्म' जैसे आलोचनात्मक साहित्य में इस शैली का प्रयोग हुआ है
5. भावात्मक शैली - ललित निबंधों एवं भाव प्रधान निबंधों में इस शैली को देखा जा सकता है।
6. व्यंगात्मक शैली- द्विवेदी जी की रचनाओं में व्यंगात्मक शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
साहित्य में स्थान-
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आधुनिक युग के अत्यंत सम्मानित साहित्यकार हैं। ललित निबन्ध सृजन की नूतन परंपरा का सूत्रपात करने का श्रेय आपको दिया जाता है। द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के अमर रचनाकार हैं।
श्रीलाल शुक्ल
रचनाएँ
1. अंगद का पाँव
2. यहाँ से वहाँ
3. अज्ञातवास
4. रागदरवारी आदि ।
1. अंगद का पाँव
2. यहाँ से वहाँ
3. अज्ञातवास
4. रागदरवारी आदि ।
भाषा-शैली
भाषा -
श्री लाल शुक्ल जी की भाषा आडम्बर रहित , व्यावहारिक खड़ी बोली है । आपने अपनी रचनाओं में उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों को भी स्थान दिया है । यथा स्थान लोकोक्तियों मुहावरों का कुशलता पूर्वक प्रयोग किया है । इसके कारण आपकी भाषा में लाक्षणिकता का पुट दिखाई पड़ता है । चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रभावशीलता आपकी भाषा की विशेषता है ।
शैली -
आपकी रचनाओं में शैलियों की विविधता के दर्शन होते हैं। आपने अपनी रचनाओं में विषयानुरूप शैलियों का प्रयोग किया है। आप के द्वारा प्रयोग की गई शैलियों का विवरण निम्नानुसार है -
1. व्यंग परक शैली - इस शैली का प्रयोग व्यंगात्मक रचनाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । 'पहली चूक' इसी श्रेणी का निबंध है
2.भावात्मक शैली - शुक्ल जी ने भावात्मक संदर्भों में इस शैली को अपनाया है ।
3. वर्णनात्मक शैली - वर्णात्मक प्रसंगों में शुक्ल जी ने इस शैली का प्रयोग किया है ।
4. संवाद शैली - आप की रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग अनूठा है । आपके संवाद सटीक एवं चुस्त हैं । इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक , चित्रात्मक , सांकेतिक आदि शैलियों का प्रयोग शुक्ल जी की रचनाओं में मिलता है ।
भाषा -
श्री लाल शुक्ल जी की भाषा आडम्बर रहित , व्यावहारिक खड़ी बोली है । आपने अपनी रचनाओं में उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों को भी स्थान दिया है । यथा स्थान लोकोक्तियों मुहावरों का कुशलता पूर्वक प्रयोग किया है । इसके कारण आपकी भाषा में लाक्षणिकता का पुट दिखाई पड़ता है । चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रभावशीलता आपकी भाषा की विशेषता है ।
शैली -
आपकी रचनाओं में शैलियों की विविधता के दर्शन होते हैं। आपने अपनी रचनाओं में विषयानुरूप शैलियों का प्रयोग किया है। आप के द्वारा प्रयोग की गई शैलियों का विवरण निम्नानुसार है -
1. व्यंग परक शैली - इस शैली का प्रयोग व्यंगात्मक रचनाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । 'पहली चूक' इसी श्रेणी का निबंध है
2.भावात्मक शैली - शुक्ल जी ने भावात्मक संदर्भों में इस शैली को अपनाया है ।
3. वर्णनात्मक शैली - वर्णात्मक प्रसंगों में शुक्ल जी ने इस शैली का प्रयोग किया है ।
4. संवाद शैली - आप की रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग अनूठा है । आपके संवाद सटीक एवं चुस्त हैं । इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक , चित्रात्मक , सांकेतिक आदि शैलियों का प्रयोग शुक्ल जी की रचनाओं में मिलता है ।
साहित्य में स्थान
आधुनिक काल के प्रसिद्ध व्यंगकार एवं कथाकार , निर्भीक रचनाकार के रूप में हिंदी के वर्तमान लेखकों में शुक्ल जी का स्थान मूर्धन्य है ।
आधुनिक काल के प्रसिद्ध व्यंगकार एवं कथाकार , निर्भीक रचनाकार के रूप में हिंदी के वर्तमान लेखकों में शुक्ल जी का स्थान मूर्धन्य है ।
रामवृक्ष बेनीपुरी
रचनाएँ-
निबंध- गेंहूँ बनाम गुलाब, मशाल, वन्दे वाणी विनायकौ
संस्मरण- जंजीरें और दीवारें
कहानी- चिता के फूल
उपन्यास- पतितों के देश में
निबंध- गेंहूँ बनाम गुलाब, मशाल, वन्दे वाणी विनायकौ
संस्मरण- जंजीरें और दीवारें
कहानी- चिता के फूल
उपन्यास- पतितों के देश में
भाषा-शैली
भाषा -
बेनीपुरी जी की भाषा सरल,शुध्द, साहित्यिक खड़ी बोली है। आपने तत्सम, देसज,और विदेशी सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है । आपकी भाषा में ओजगुण विद्यमान है। शब्दों के लाक्षणिक एवं व्यंजनात्मक प्रयोग ने भाषा को गभीरता प्रदान की है। आपकी भाषा में लोकोक्ति एवं मुहावरों के प्रयोग से सजीवता आ गई है।
बेनीपुरी जी की भाषा सरल,शुध्द, साहित्यिक खड़ी बोली है। आपने तत्सम, देसज,और विदेशी सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है । आपकी भाषा में ओजगुण विद्यमान है। शब्दों के लाक्षणिक एवं व्यंजनात्मक प्रयोग ने भाषा को गभीरता प्रदान की है। आपकी भाषा में लोकोक्ति एवं मुहावरों के प्रयोग से सजीवता आ गई है।
शैली-
आपकी रचनाओं में निम्नांकित शैलियाँ दिखाई पड़ती हैं -
1 वर्णात्मक शैली - बेनीपुरी जी ने इस शैली में रेखाचित्र , संस्मरण, यात्रा वृतांत एवं जीवनी आदि की रचना की है।
2 आलोचनात्मक शैली - आपने समीक्षा के समय आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया है।
3 चित्रोपम शैली - इस शैली का प्रयोग रेखाचित्र में दिखाई पड़ता है । यत्र - तत्र कहानी तथा निबंध में भी इस शैली के दर्शन किए जा सकते है।
4 भावात्मक शैली - बेनीपुरी जी ने इस शैली का प्रयोग अपने ललित निबंधों में सर्वाधिक किया है।
5 प्रतीकात्मक शैली - बेनीपुरी जी अपने विचारों को प्रतीकात्मक शैली में प्रस्तुत करने में सिध्दस्त हैं । नींव की ईंट , गेहूँ और गुलाब , निबन्ध इसी शैली में लिखे गए हैं ।
आपकी रचनाओं में निम्नांकित शैलियाँ दिखाई पड़ती हैं -
1 वर्णात्मक शैली - बेनीपुरी जी ने इस शैली में रेखाचित्र , संस्मरण, यात्रा वृतांत एवं जीवनी आदि की रचना की है।
2 आलोचनात्मक शैली - आपने समीक्षा के समय आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया है।
3 चित्रोपम शैली - इस शैली का प्रयोग रेखाचित्र में दिखाई पड़ता है । यत्र - तत्र कहानी तथा निबंध में भी इस शैली के दर्शन किए जा सकते है।
4 भावात्मक शैली - बेनीपुरी जी ने इस शैली का प्रयोग अपने ललित निबंधों में सर्वाधिक किया है।
5 प्रतीकात्मक शैली - बेनीपुरी जी अपने विचारों को प्रतीकात्मक शैली में प्रस्तुत करने में सिध्दस्त हैं । नींव की ईंट , गेहूँ और गुलाब , निबन्ध इसी शैली में लिखे गए हैं ।
साहित्य में स्थान -
स्वतंत्रता सेनानी, महान निबंधकार, प्रसिध्द रेखाचित्रकार, आलोचक, श्रेष्ठ नाट्यशिल्पी रामवृक्ष बेनीपुरी का हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ स्थान है।
स्वतंत्रता सेनानी, महान निबंधकार, प्रसिध्द रेखाचित्रकार, आलोचक, श्रेष्ठ नाट्यशिल्पी रामवृक्ष बेनीपुरी का हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ स्थान है।
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल
रचनाएं -
निबंध संग्रह - कल्पवृक्ष
समीक्षात्मक ग्रन्थ - मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत
सांस्कृतिक साहित्य- पाणिनकालीन भारत वर्ष
निबंध संग्रह - कल्पवृक्ष
समीक्षात्मक ग्रन्थ - मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत
सांस्कृतिक साहित्य- पाणिनकालीन भारत वर्ष
भाषा-शैली-
भाषा- आपकी भाषा शुध्द, परिमार्जित , संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है । इसलिए कही-कही वह कठिन भी हो गई है। सामान्यत: विषयानुरूप सरलता ,सुबोधता और सहज प्रवाह आपकी भाषाकी विशेषता है । आपकी रचनाओं में देशज शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगोचर होता है । विषय की गंभीरता के कारण भाषा भी गंभीर हो गई है ।
शैली- डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की शैली में उनके व्यक्तित्व की झलक दिखाई पड़ती है । आपकी शैली के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं-
1. विचारात्मक शैली - आपके निबंधों में विचारात्मक शैली की प्रधानता है।
2. गवेषणात्मक शैली- आप अन्वेषक थे, पुरातत्व के व्याख्याता थे। आप ने अनेक प्राचीन ग्रंथों, घटनाओं, पात्रों आदि से सम्बंधित निबंधों में गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किया।
3. भावात्मक शैली- आपने भाव प्रधान निबंधों में इस शैली का प्रयोग किया है। आपकी भावात्मक शैली का रूप काव्यात्मक है।
4. उध्दरण शैली- आपने अपने निबंधों में अपनी बात को पुष्ट करने के लिए संस्कृत के उध्दरणों का बड़ी कुशलता के साथ उध्दृत किया है।
5. सूत्रात्मक शैली- आपने अपने निबंधों में जीवन के सत्य को उद्घाटित करने हेतु सूत्रात्मक शैली को अपनाया है। इसके अतिरिक्त आपने व्यास एवं सामासिक शैली का भी अपनी रचनाओं में उपयोग किया है।
भाषा- आपकी भाषा शुध्द, परिमार्जित , संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है । इसलिए कही-कही वह कठिन भी हो गई है। सामान्यत: विषयानुरूप सरलता ,सुबोधता और सहज प्रवाह आपकी भाषाकी विशेषता है । आपकी रचनाओं में देशज शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगोचर होता है । विषय की गंभीरता के कारण भाषा भी गंभीर हो गई है ।
शैली- डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की शैली में उनके व्यक्तित्व की झलक दिखाई पड़ती है । आपकी शैली के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं-
1. विचारात्मक शैली - आपके निबंधों में विचारात्मक शैली की प्रधानता है।
2. गवेषणात्मक शैली- आप अन्वेषक थे, पुरातत्व के व्याख्याता थे। आप ने अनेक प्राचीन ग्रंथों, घटनाओं, पात्रों आदि से सम्बंधित निबंधों में गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किया।
3. भावात्मक शैली- आपने भाव प्रधान निबंधों में इस शैली का प्रयोग किया है। आपकी भावात्मक शैली का रूप काव्यात्मक है।
4. उध्दरण शैली- आपने अपने निबंधों में अपनी बात को पुष्ट करने के लिए संस्कृत के उध्दरणों का बड़ी कुशलता के साथ उध्दृत किया है।
5. सूत्रात्मक शैली- आपने अपने निबंधों में जीवन के सत्य को उद्घाटित करने हेतु सूत्रात्मक शैली को अपनाया है। इसके अतिरिक्त आपने व्यास एवं सामासिक शैली का भी अपनी रचनाओं में उपयोग किया है।
2. गवेषणात्मक शैली- आप अन्वेषक थे, पुरातत्व के व्याख्याता थे। आप ने अनेक प्राचीन ग्रंथों, घटनाओं, पात्रों आदि से सम्बंधित निबंधों में गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किया।
3. भावात्मक शैली- आपने भाव प्रधान निबंधों में इस शैली का प्रयोग किया है। आपकी भावात्मक शैली का रूप काव्यात्मक है।
4. उध्दरण शैली- आपने अपने निबंधों में अपनी बात को पुष्ट करने के लिए संस्कृत के उध्दरणों का बड़ी कुशलता के साथ उध्दृत किया है।
5. सूत्रात्मक शैली- आपने अपने निबंधों में जीवन के सत्य को उद्घाटित करने हेतु सूत्रात्मक शैली को अपनाया है। इसके अतिरिक्त आपने व्यास एवं सामासिक शैली का भी अपनी रचनाओं में उपयोग किया है।
साहित्य में स्थान-
इतिहास, संस्कृत एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ; प्रसिद्ध निबंधकार ,समीक्षक, अनुवादक , प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन्नायक डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जी का हिंदी साहित्य में मूर्धन्य स्थान है।
इतिहास, संस्कृत एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ; प्रसिद्ध निबंधकार ,समीक्षक, अनुवादक , प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन्नायक डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जी का हिंदी साहित्य में मूर्धन्य स्थान है।
कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
रचनाएं -
निबंध संग्रह - जिन्दगी मुस्कुराई
रिपोर्ताज - क्षण बोले : कण मुस्कुराए
लघु कथा संग्रह - धरती के फूल
निबंध संग्रह - जिन्दगी मुस्कुराई
रिपोर्ताज - क्षण बोले : कण मुस्कुराए
लघु कथा संग्रह - धरती के फूल
भाषा-शैली-
भाषा- आपकी भाषा सरल,सरस एवं प्रभावपूर्ण खड़ी बोली है । आपने अपनी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ है तदभव,देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश किया है। गूढ़ बातों को सरल शब्दों में व्यक्त करना आपकी भाषा की विशेषता है।
शैली- कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी की शैली में उनके व्यक्तित्व की छाप दिखाई पड़ती है । आपकी शैली के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं-
1. चित्रात्मक शैली - आपने रेखाचित्र, रिपोर्ताज लेखन में इस शैली का प्रयोग किया है ।
2. विचारात्मक शैली- आपके निबंधों में विचारात्मक शैली की झलक दिखाई पड़ती है।
3. भावात्मक शैली- आपने भाव प्रधान कहानियों में इस शैली का प्रयोग किया है। आपकी भावात्मक शैली का रूप काव्यात्मक है।
भाषा- आपकी भाषा सरल,सरस एवं प्रभावपूर्ण खड़ी बोली है । आपने अपनी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ है तदभव,देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश किया है। गूढ़ बातों को सरल शब्दों में व्यक्त करना आपकी भाषा की विशेषता है।
शैली- कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी की शैली में उनके व्यक्तित्व की छाप दिखाई पड़ती है । आपकी शैली के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं-
1. चित्रात्मक शैली - आपने रेखाचित्र, रिपोर्ताज लेखन में इस शैली का प्रयोग किया है ।
2. विचारात्मक शैली- आपके निबंधों में विचारात्मक शैली की झलक दिखाई पड़ती है।
3. भावात्मक शैली- आपने भाव प्रधान कहानियों में इस शैली का प्रयोग किया है। आपकी भावात्मक शैली का रूप काव्यात्मक है।
2. विचारात्मक शैली- आपके निबंधों में विचारात्मक शैली की झलक दिखाई पड़ती है।
3. भावात्मक शैली- आपने भाव प्रधान कहानियों में इस शैली का प्रयोग किया है। आपकी भावात्मक शैली का रूप काव्यात्मक है।
साहित्य में स्थान-
मिश्र जी गाँधीवादी थे। विचारों की उच्चता, आचरण की पवित्रता और जीवन की सादगी आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता थी। हिन्दी साहित्य जगत में रिपोर्ताज लेखन में सिध्दहस्त साहित्यकार के रूप में आपका स्थान महत्वपूर्ण है।
मिश्र जी गाँधीवादी थे। विचारों की उच्चता, आचरण की पवित्रता और जीवन की सादगी आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता थी। हिन्दी साहित्य जगत में रिपोर्ताज लेखन में सिध्दहस्त साहित्यकार के रूप में आपका स्थान महत्वपूर्ण है।
सेठ गोविंददास
रचनाएं -
1. कर्तव्य (नाटक )
2. पंचभूत (एकांकी संग्रह)
3. गरीबी और अमीरी ( नाटक )
1. कर्तव्य (नाटक )
2. पंचभूत (एकांकी संग्रह)
3. गरीबी और अमीरी ( नाटक ) भाषा-शैली-
भाषा- सेठ गोविंददास मुख्यतः नाटककार हैं। आपकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोलीहै। भाषा भाव,विषय एवं पात्रानुकूल है । आपकी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव,देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश हुआ है। चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रवाहशीलता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषता है ।
शैली- सेठ गोविन्ददास जी की शैली शिल्प और भाव प्रधान है । इन्होने मुख्यतः नाट्यशैली का प्रयोग किया है। आपकी नाटकों में चरित्र-चित्रण और संवाद की गतिशीलता के दर्शन सहज ही किए जा सकते हैं।
भाषा- सेठ गोविंददास मुख्यतः नाटककार हैं। आपकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोलीहै। भाषा भाव,विषय एवं पात्रानुकूल है । आपकी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव,देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश हुआ है। चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रवाहशीलता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषता है ।
शैली- सेठ गोविन्ददास जी की शैली शिल्प और भाव प्रधान है । इन्होने मुख्यतः नाट्यशैली का प्रयोग किया है। आपकी नाटकों में चरित्र-चित्रण और संवाद की गतिशीलता के दर्शन सहज ही किए जा सकते हैं।
साहित्य में स्थान-
सेठ गोविन्ददास गाँधीवादी थे। विचारों की उच्चता, आचरण की पवित्रता और जीवन की सादगी आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है । प्रसिद्ध नाटक और एकांकीकार राष्ट्रीयचेतना के सर्जक के रूप में आपका स्थान महत्वपूर्ण है।
सेठ गोविन्ददास गाँधीवादी थे। विचारों की उच्चता, आचरण की पवित्रता और जीवन की सादगी आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है । प्रसिद्ध नाटक और एकांकीकार राष्ट्रीयचेतना के सर्जक के रूप में आपका स्थान महत्वपूर्ण है।
हरिकृष्ण 'प्रेमी'
रचनाएं -
1. बन्धन (नाटक )
2. बादलों के पार (एकांकी )
3. रक्षाबंधन ( नाटक )
1. बन्धन (नाटक )
2. बादलों के पार (एकांकी )
3. रक्षाबंधन ( नाटक ) भाषा-शैली-
भाषा- हरिकृष्ण 'प्रेमी' सफल नाटककार हैं। आपकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोली है। आपने अवसर, पात्र, विषय आदि के अनुरूप भाषा का सटीक प्रयोग किया है । आवश्यकतानुसार आपने अपनी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव,देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश किया है। संप्रेषणशीलता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषता है ।
शैली- हरिकृष्ण 'प्रेमी जी ने विविध शैलियों का प्रयोग किया है । इन्होने मुख्यतः गीत नाट्यशैली का सफल प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त संवाद शैली, भावात्मक शैली का भी अपने नाटकों में प्रयोग किया है। 'प्रेमी' जी के नाटकों में स्वच्छंदतावादी शैली का सयमित एवं अनुशासित प्रयोग हुआ है।
भाषा- हरिकृष्ण 'प्रेमी' सफल नाटककार हैं। आपकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोली है। आपने अवसर, पात्र, विषय आदि के अनुरूप भाषा का सटीक प्रयोग किया है । आवश्यकतानुसार आपने अपनी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव,देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश किया है। संप्रेषणशीलता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषता है ।
शैली- हरिकृष्ण 'प्रेमी जी ने विविध शैलियों का प्रयोग किया है । इन्होने मुख्यतः गीत नाट्यशैली का सफल प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त संवाद शैली, भावात्मक शैली का भी अपने नाटकों में प्रयोग किया है। 'प्रेमी' जी के नाटकों में स्वच्छंदतावादी शैली का सयमित एवं अनुशासित प्रयोग हुआ है।
साहित्य में स्थान-
'प्रेमी' जी ने राष्ट्रीय मूल्यों की प्रतिष्ठा, त्याग, तपस्या, सेवा, बलिदान एवं सामाजिक चेतना के लिए ऐतिहासिक और सामाजिक नाटकों का प्रणयन किया। मानवीय प्रेम और देशभक्ति की रसानुभूति करने वाले हिन्दी के नाटककारों में हरिकृष्ण 'प्रेमी जी का विशिष्ट स्थान है ।
'प्रेमी' जी ने राष्ट्रीय मूल्यों की प्रतिष्ठा, त्याग, तपस्या, सेवा, बलिदान एवं सामाजिक चेतना के लिए ऐतिहासिक और सामाजिक नाटकों का प्रणयन किया। मानवीय प्रेम और देशभक्ति की रसानुभूति करने वाले हिन्दी के नाटककारों में हरिकृष्ण 'प्रेमी जी का विशिष्ट स्थान है ।
सियाराम शरण गुप्त
रचनाएँ -
1. दूर्वादल ( काव्य)
2. पुण्यपर्व ( नाटक )
3. अंतिम आकाँक्षा ( उपन्यास )
1. दूर्वादल ( काव्य)
2. पुण्यपर्व ( नाटक )
3. अंतिम आकाँक्षा ( उपन्यास )
भाषा- शैली-
भाषा -
आपकी भाषा सरल, सुस्पष्ट और परिष्कृत है । आपने खड़ी बोली के सहजतम रूप का प्रयोग किया है । भाषा में क्लिष्टता , या बौध्दिकता का भार कहीं दिखाई नहीं पड़ता। आपकी रचनाओं में उक्तियाँ एवं मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग होने से भाषा में सजीवता एवं रोचकता आ गई है । विषय, पात्र एवं अवसर अनुरूप भाषा का प्रयोग आपकी भाषा की महत्वपूर्ण विशेषता है ।
आपकी भाषा सरल, सुस्पष्ट और परिष्कृत है । आपने खड़ी बोली के सहजतम रूप का प्रयोग किया है । भाषा में क्लिष्टता , या बौध्दिकता का भार कहीं दिखाई नहीं पड़ता। आपकी रचनाओं में उक्तियाँ एवं मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग होने से भाषा में सजीवता एवं रोचकता आ गई है । विषय, पात्र एवं अवसर अनुरूप भाषा का प्रयोग आपकी भाषा की महत्वपूर्ण विशेषता है ।
शैली -
आपकी शैली सरल , परिमार्जित एवं स्वाभाविक है । आपकी शैली के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं -
1. भावात्मक शैली - गुप्त जी अपनी रचनाओं में हृदय की की अनुभूतियों का प्रभावी अंकन एवं पाठकों में अपनी अमिट छाप छोड़ने के लिए इस शैली का प्रयोग बाखूबी किया है ।
2. विचारात्मक शैली - आपकी कहानियों में इस शैली का प्रयोग देखा जा सकता है ।
3. वर्णनात्मक शैली - 'बैल की बिक्री ' कहानी में मोहन और शिबू आदि के सन्दर्भ में इस शैली का उपयोग किया गया है ।
इसके अतिरिक्त आपने प्रसंगानुसार व्यंगात्मक, सूत्रात्मक शैलियों का भी उपयोग किया है ।
1. भावात्मक शैली - गुप्त जी अपनी रचनाओं में हृदय की की अनुभूतियों का प्रभावी अंकन एवं पाठकों में अपनी अमिट छाप छोड़ने के लिए इस शैली का प्रयोग बाखूबी किया है ।
2. विचारात्मक शैली - आपकी कहानियों में इस शैली का प्रयोग देखा जा सकता है ।
3. वर्णनात्मक शैली - 'बैल की बिक्री ' कहानी में मोहन और शिबू आदि के सन्दर्भ में इस शैली का उपयोग किया गया है ।
इसके अतिरिक्त आपने प्रसंगानुसार व्यंगात्मक, सूत्रात्मक शैलियों का भी उपयोग किया है ।
साहित्य में स्थान -
हिन्दी के विनम्र सेवक और संत साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित सियाराम शरण गुप्त जी का हिंदी साहित्य जगत में महत्वपूर्ण स्थान है।
हिन्दी के विनम्र सेवक और संत साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित सियाराम शरण गुप्त जी का हिंदी साहित्य जगत में महत्वपूर्ण स्थान है।
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