तुलसीदास
रचनाएँ
1. रामचरित मानस ( महाकाव्य )
2. विनय पत्रिका
3. कवितावली
भाव -पक्ष -
1. भक्ति भावना - तुलसीदास राम भक्ति शाखा के प्रतिनिध कवि हैं। उनका सम्पूर्ण काव्य राम की भक्ति भावना से ओत-प्रोत है ।
2. समन्वयवादी दृष्टिकोण - आपके आराध्य राम थे किन्तु आपने सभी देवी देवताओं की स्तुति कर शैव वैष्णवों के मतभेद को दूर किया है ।
3. लोकमंगलकारी एवं लोकरंजक काव्य सृजन - आपकी रचना 'सर्व जन हिताय और सर्व जन सुखाय ' से युक्त है ।
4. रससिध्दता - आपकी रस सिद्ध कवि है । आपके काव्य में श्रृंगार, शांत और वीर रस की त्रिवेणी का अद्भुत संगम है । इसके अतिरिक्त आपकी रचनाओं में करुण, रौद्र, अद्भुत आदि सभी रसों का रसस्वादन किया जा सकता है ।
कला -पक्ष
1. भाषा - आप संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे । आपने अपनी रचनाओं में मुख्यतः अवधी और ब्रज भाषा का प्रयोग किया है । रामचरित मानस अवधी में तथा तथा कवितावली , गीतावली, विनय पत्रिका आदि की रचना ब्रज भाषा में की है। आपकी भाषा सरल,सरस, एवं रोचक है । कहीं -कहीं आपकी रचनाओं में भोजपुरी, बुंदेलखंडी तथा अरबी और फ़ारसी के शब्द भी मिलते हैं ।
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा, चौपाई, सवैया छंदों का प्रयोग किया है । दोहा , चौपाई , कवित्त छंद में रामचरित मानस की रचना की । गीतावली , विनयपत्रिका पद शैली में और कवितावली की रचना सवैया में किया । दोहावली की रचना दोहा छंद में की ।
आपकी रचनाओं में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों की छटा दृष्टव्य है ।
साहित्य में स्थान -
युगदृष्टा गोस्वामी तुलसीदास जी भक्तिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं । भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्य के कुशल चितेरे, लोकमंगल एवं लोकरंजक काव्य के सर्जक , रामचरित मानस जैसे महान ग्रन्थ के प्रणेता, करुणा के कवि , तुलसीदास जी का साहित्य जगत में अनुपम स्थान है ।
रामधारी सिंह 'दिनकर'
रचनाएँ-
1. उर्वशी ( महाकाव्य )
2. प्रणभंग ( खंडकाव्य )
3. रश्मिरथी ( खंडकाव्य )
4. कुरुक्षेत्र ( खंडकाव्य )
5. रेणुका ( काव्य-संग्रह )
भाव-पक्ष
1. शोषण के विरुध्द प्रखर स्वर - दिनकर जी की कविता में पूंजीपतियों और शासकों द्वारा किए जा रहे शोषण के विरुध्द स्वर प्रखर होकर मुखरित हुआ है। इनकी रचनाओं में किसानों एवं मजदूरों के प्रति सहानुभूति की झलक भी दिखाई पड़ती है ।
2. राष्ट्रीयता एवं देश प्रेम से ओत-प्रोत रचना - दिनकर जी की कविताएँ राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है. ।
जैस- स्वातंत्र्य जाति की लगन है , व्यक्ति की धुन है , बाहरी वस्तु यह नहीं, भीतरी गुण है ।
3. ओज एवं उत्साह प्रधान कविता - इनकी कविता में उत्साह एवं ओज की प्रधानता है । उदाहरण-
वैराग्य छोड़कर बांहों की विभा सँभालो ,
चट्टानों की छाती से दूध निकालो ।
कला पक्ष
भाषा -
दिनकर जी की भाषा तत्सम प्रधान शुध्द ,साहित्यिक खड़ी बोली है। भाषा भावानुकूल एवं प्रभावशाली है । इनकी भाषा व्याकरण सम्मत एवं अलंकारपूर्ण है ।
शैली -
दिनकर जी ने प्रवन्ध एवं मुक्तक दोनों प्रकार की काव्य शैलियों का प्रयोग किया है । उनकी शैली ओज प्रधान है ।
अलंकार -
दिनकर जी की कविताओं में अलंकारों का स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुआ है । मख्य रूप से उपमा, रूपक उत्प्रेक्षा और अनुप्रास अलंकारों की छटा उनके काव्य में विद्यमान है।
छंद -
दिनकर जी की ने तुकांत एवं अतुकांत दोनों प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है ।
साहित्य में स्थान -
दिनकर जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं । वे अपने युग के प्रतिनिधि कवि हैं । उनकी कविता में महर्षि दयानन्द -सी निडरता भगत सिह जैसा बलिदान, गांधी -सी निष्ठा और कबीर - सी सुधार भावना एवं स्वच्छन्दता विद्यमान है ।
सूरदास
रचनाएँ-
1. सूरसागर ( भगवान कृष्ण की लीलाओं से संबंधित 10000 पद संकलित हैं )
2. सूरसारावली ( सूरसागर का सार रूप लगभग 1107 पद संकलित हैं)
3. साहित्य लहरी ( इसमें रस और अलंकार से परिपूर्ण 118 पद हैं )
भाव पक्ष-
सूरदास प्रेम और सौन्दर्य के अमर गायक हैं । उनका भावपक्ष अत्यंत सबल है । जिसका विवरण निम्नानुसार है-
1. भक्ति भाव - सूरदास कृष्ण के अनन्य भक्त थे । उनकी रचनाओं में भक्ति भाव की अविरल गंगा बहती है । उनकी भक्ति धारा सख्यभाव की है, किन्तु इसमें विनय, दाम्पत्य और माधुर्य भाव का भी संयोग है ।
2. वात्सल्य रस का अद्वितीय प्रयोग - सूरदास वात्सल्य के सर्वोत्कृष्ट कवि हैं । इनकी रचनाओं में श्रीकृष्ण के बालचरित, शारीरिक श्री ,एवं नन्द और यशोदा के पुत्र- प्रेम ( वात्सल्य) का अद्भुत सौंदर्य विद्यमान है ।
3. श्रृंगार रस का चित्रण - सूरदास ने श्रृंगार रस का कोना -कोना झांक आए हैं । उनकी रचनाओं में संयोग एवं वियोग दोनों रूपों का मार्मिक चित्रण देखा जा सकता है ।
कलापक्ष -
1. ब्रज भाषा का लालित्यपूर्ण प्रयोग - सूरदास के पदों की भाषा ब्रज भाषा है । उनके पदों में ब्रज भाषा का लालित्यपूर्ण , परिष्कृत एवं निखरा हुआ रूप देखने को मिलता है । माधुर्य की प्रधानता के कारण इनकी भाषा अत्यंत प्रभावोत्पादक हो गई है ।
2.संगीतमय गेय पद शैली - सूरदास का संपूर्ण काव्य संगीत की राग - रागनियों में बँधा पद शैली का गीत काव्य है । व्यंग्य , वचनवक्रता और वाग्वैदग्धता सूर की रचना की विशेषता है ।
3. अलंकारों का सहज प्रयोग - सूर की रचनाओं में अलंकार का सहज रूप देखने को मिलता है । इनकी रचनाओं में मुख्यतः उपमा , उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार की छटा देखी जा सकती है ।
साहित्य में स्थान -
सूरदास भक्तिकाल के अष्टछाप कवियों में श्रेष्ठ कवि हैं । वे वात्सल्य और श्रृंगार रस के आचार्य हैं। भाव तथा कलापक्ष की जो गरिमा सूरदास की है , वह अन्यत्र दुर्लभ है। सूर हिंदी साहित्याकाश के सूर (सूर्य) हैं । उनके लिए यह कथन सर्वथा उपयुक्त है -
सूर , सूर तुलसी शशि उडगन केशव दास।
अब के कवि खद्योत सम, जहैं - तँह करत प्रकाश ॥
सूर , सूर तुलसी शशि उडगन केशव दास।
अब के कवि खद्योत सम, जहैं - तँह करत प्रकाश ॥
जयशंकर प्रसाद
रचनाएँ -
1. कामायनी ( महाकाव्य )
2. करुणालय ( गीत नाट्य )
3. कंकाल ( उपन्यास )
भाव पक्ष -
प्रसाद जी का भाव क्षेत्र व्यापक है । उनके भाव पक्ष को निम्न बिंदुओं में प्रस्तुत किया जा सकता है -
1. प्रेम एवं सौंदर्य का चित्रण - प्रसाद जी मुख्यतः प्रेम और सौन्दर्य के उपासक हैं । प्रसाद जी द्वारा व्यक्त सौंदर्य में बाह्य और आंतरिक सौंदर्य का अद्भुत सामंजस्य है । कामायनी का यह उदाहरण देखिए -
घिर रहे थे घुँघराले बल अंस अवलंबित मुख के पास ,
नील घनशावक -से सुकुमार सुधा भरने को विधु के पास ।
2. नारी के प्रति सम्मान का भाव - प्रसाद जी की रचनाओं में नारी के प्रति श्रध्दा एवं सम्मान के भाव है ।
3. अनुभूति की गहनता - प्रसाद जी के काव्य में अनुभूति की गहनता विद्यमान है । आंसू का यह प्रसंग दृष्टव्य है।
"रो -रो कर सिसक-सिसक कर ,
कहता मैं करुण कहानी ,
तुम सुमन नोचते सुनते,
करते जाते अनजानी । "
इसके अतिरिक्त आपकी रचनाओं में कल्पना का अतिरेक , रहस्यवाद , दार्शनिक चिंतन तथा वेदना की अभिव्यक्ति के स्वर समाहित हैं ।
कला पक्ष-
1. भाषा - प्रसाद जी के काव्य की भाषा संस्कृतनिष्ठ, व्याकरण सम्मत , परिष्कृत एवं परिमार्जित खड़ी बोली है । आपने प्रथम काव्य संग्रह 'चित्राधार' की रचना ब्रज भाषा में की है । इसके बाद समस्त काव्य रचना शुध्द ,साहित्यिक खड़ी बोली में किया है ।
2. अलंकार - प्रसाद जी की रचनाओं में अलंकारों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है । आप सहज एवं स्वाभाविक अलंकार योजना के पक्षधर हैं । आपके काव्य में उपमा , रूपक, मानवीकरण , विशेषण विपर्यय आदि अलंकारों का आकर्षक प्रयोग हुआ है ।
3. छंद योजना - प्रसाद जी ने काव्य रचना का प्रारंभ सवैया एवं कवित्त छंदों से किया किन्तु बाद में आपने गीत- शैली एवं अतुकांत छंद में काव्य रचना की । आपने नवीन छंदों का निर्माण भी किया ।
साहित्य में स्थान
भाव पक्ष एवं कला पक्ष की दृष्टि से प्रसादजी का काव्य उच्चकोटि का है । आपके काव्य में इतिहास , दर्शन एवं कला का मणिकांचन संयोग देखा जा सकता है । छायावाद के जनक जयशंकर प्रसादजी का हिंदी साहित्य के आधुनिक रचनाकारों में विशिष्ट स्थान है ।
बिहारी
रचनाएँ
1. बिहारी सतसई
भाव -पक्ष -
1. श्रृंगार रस प्रधान काव्य - रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी का काव्य श्रृंगार रस प्रधान है । आपकी रचना में नायक और नायिका के रूप-चेष्टा, शील सौंदर्य आदि का अद्भुत चित्रण है |
2. भक्ति भावना - बिहारी जी का काव्य भक्ति विषयक श्रृंगार की भावना से भी ओत- प्रोत है ।
3. नीति परक रचना - आपकी रचना नीति परक है ।
4.प्रकृति का सजीव चित्रांकन - आपके काव्य में प्रकृति का सजीव चित्रांकन ऋतु वर्णन के रूप में हुआ है |
इसके अतिरिक्त आपकी रचना में सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और ज्योतिष का भी पुट है |
कला -पक्ष
1. भाषा - बिहारी जी की भाषा साहित्यिक ब्रज भाषा हैं| आपकी भाषा प्रौढ़ और प्राञ्जल है | आपकी भाषा में पूर्वी प्रयोग के साथ बुन्देली का भी प्रभाव परिलक्षित होता है | भाषा मुहावरेदार एवं सांकेतिक शब्दावली युक्त है |
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा छंद का प्रयोग किया है । उपमा, उत्प्रेक्षा,यमक अनुप्रास आदि अलंकारों की छटा आपकी रचनाओं में स्वाभाविक रूप से दृष्टव्य है |
3. सामासिक शैली का प्रयोग - आपकी रचनाओं में समास शैली का प्रयोग हुआ है | आपकी रचनाओं के सम्बन्ध में यह दोहा प्रचलित है - सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर |
देखन में छोटे लगें , घाव करैं गंभीर |
साहित्य में स्थान -
बिहारी रीतिकालीन रीतिसिध्दि भावधारा के प्रसिध्द कवि हैं | गागर में सागर भरने की कला में प्रवीण बिहारी उस पीयूष-वर्षी मेघ के समान हैं, जिसके प्रकट होते सूर्य ,चंद्र और तारों का प्रकाश छिप जाता है |
महादेवी वर्मा
रचनाएँ
1.यामा ( काव्य, ज्ञानपीठ से पुरस्कृत रचना )
2. नीहार ( काव्य)3. अतीत के चलचित्र ( संस्मरण)
भाव -पक्ष -
महादेवी वर्मा वेदना की कवियत्री हैं। इनके काव्य का प्रमुख स्वर करुणा और वेदना है। इनका काव्य संगीतमय है। अत्यन्त मधुर है। इनकी रचनाओं में रहस्यवाद की झलक दिखाई पड़ती है। कवियता भाव प्रधान है। पढ़ने से पाठक का अंतर्मन अविभूत हो उठता है। आपकी कविताएँ पाठक को जीवनपथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। आपके काव्य में करुण और शांत रस की प्रधानता है।
कला -पक्ष
'महादेवी वर्मा' जी ने प्रारंभ में ब्रज भाषा में कविताएँ लिखी हैं। बाद में खड़ी बोली में काव्य रचना की है। आपकी भाषा सरस,सुकोमल और परिमार्जित है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा सुंदर और प्रभावशाली बन गई है।
आपकी छंद योजना विषयवस्तु के अनुकूल है। आपकी रचनाओं में अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। अनुप्रास, उपमा, रूपक और विरोधाभास प्रमुख अलंकार हैं। आपकी रचनाओं में सामासिक पदों की छटा भी दृष्टव्य है।
आपकी छंद योजना विषयवस्तु के अनुकूल है। आपकी रचनाओं में अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। अनुप्रास, उपमा, रूपक और विरोधाभास प्रमुख अलंकार हैं। आपकी रचनाओं में सामासिक पदों की छटा भी दृष्टव्य है।
साहित्य में स्थान -
'महादेवी वर्मा' छायावाद की प्रतिनिधि कवियत्री हैं। आपके काव्य में रहस्यवाद का भी समावेश हुआ है। महादेवी वर्मा कवियत्री के साथ-साथ कुशल लेखिका भी हैं। हिन्दी साहित्य जगत में वेदना की प्रतिमूर्ति और 'आधुनिक काल की मीरा' के रूप में आपका स्थान अग्रगण्य है।
मलिक मुहम्मद जायसी
रचनाएँ
1. पद्मावत ( महाकाव्य)
2. अखरावट
3. आख़िरी कलम भाव -पक्ष -
1. निर्गुण ब्रह्म की उपासना हेतु प्रेम की साधना पर विश्वास - 'जायसी' भक्तिकाल के निर्गुण भक्तिधारा के प्रेममार्गी शाखा के कवि हैं। आपने प्रेम के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म की उपासना का चित्रण 'पद्मावत' में किया है।
2. गुरु का महत्त्व - 'जायसी' ने गुरु की महिमा को स्वीकार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके दो गुरु थे। आपने गुरु को ब्रह्म का स्थान प्रदान किया है।
3. श्रंगार से परिपूर्ण भक्ति भाव का चित्रण -'जायसी' ने रानी पद्मावती और राजा रत्नसेन के माध्यम से श्रंगार से परिपूर्ण भक्ति भाव का चित्रण किया है।
4.प्रकृति का सजीव एवं उद्दीपन के रूप में चित्रण - आपके काव्य में प्रकृति का सजीव एवं उद्दीपन के रूप में चित्रांकन ऋतु वर्णन के रूप में हुआ है |
कला -पक्ष
1. भाषा - 'जायसी' जी की भाषा ठेठ अवधी हैं| आपकी भाषा में किसान -जीवन की छाप दिखाई पड़ती है | इसके अतिरिक्त फारसी के शब्दों का भी प्रयोग देखा जा सकता है | भाषा मुहावरेदार एवं सांकेतिक शब्दावली युक्त है |
2. छंद एवं अलंकार - आपने मुख्यतः दोहा और चौपाई छंद का प्रयोग किया है । उपमा, ,रूपक अनुप्रास, विरोधाभास आदि अलंकारों की छटा आपकी रचनाओं में स्वाभाविक रूप से दृष्टव्य है |
3. फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग - आपकी रचनाओं में फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग हुआ है |किन्तु वह पूर्णतः भारतीय आत्मा के अनुरूप है।
साहित्य में स्थान -
'जायसी' भक्तिकाल के निर्गुण भक्तिधारा के प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। 'पद्मावत' जैसे महाकाव्य के लिए हिंदी साहित्य जगत सदा ऋणी रहेगा। ,
धन्यवाद shukla nk ji
जवाब देंहटाएंAanshu lahar ka bhaopaksh
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां सर जी
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंThanks 😀
जवाब देंहटाएंThanks sir help ke liye
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंGood Boos
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